जेकेके 'नाट्यशास्त्र संवाद' का हुआ आयोजन
जयपुर। नाट्य शास्त्र को अपनाने वाले अभिनेता ऋषि परम्परा से हैं क्योंकि ऋषि के समान ही अभिनेता भी सत्य की तलाश में रहता है। नाट्य करने वाले अभिनेता दृढ संकल्प के साथ नाट्य परम्परा को अपनाता है। यह कहना था नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के निदेशक डॉ. अर्जुनदेव चारण का। वे जवाहर कला केन्द्र में आयोजित 'नाट्यशास्त्र संवाद' में संस्कृतिकर्मी, कवि, कला आलोचक एवं यात्रावृतान्तकार डॉ. राजेश कुमार व्यास से चर्चा कर रहे थे।
डॉ चारण ने 'नाट्यशास्त्र' में निहित कथा के महत्व को बताते हुए कहा कि यह वो 5वां वेद है जिसका निर्माण स्वयं ब्रह्मा ने देवताओं के लिए किया था। नाट्यशास्त्र की उत्पत्ति करने के बाद ब्रह्मा ने देवताओं द्वारा इस शास्त्र का प्रयोग करने के लिए इन्द्र को दिया, लेकिन इस पर इन्द्र ने कहा कि स्वयं देवता भी इस शास्त्र का प्रयोग करने में अशक्त है और केवल ऋषि ही इसका प्रयोग कर सकते हैं क्योंकि उनमें ही वो चार गुण है जो उन्हें इसके योग्य बनाते हैं। वे चार गुण है - वे कुशल हैं, बोलने में माहिर है, सवेंदनशील है और मेहनती होते हैं।
चर्चा के दौरान डॉ. चारण ने कहा कि नाट्यशास्त्र जिसे अमृत कोश भी कहते हैं भारतीय ज्ञान परम्परा का आधार ग्रन्थ है। यह बेहद निराशाजनक है कि वर्तमान में युवा पीढ़ी हमारी पौराणिक परम्परा से लगभग अपरिचित है। नाट्य शास्त्र वास्तव में आमजन के लिए नहीं बल्कि विशिष्ठ जन, जो इस विधा में सक्रिय हैं, के लिए लिखा गया है।
रंगमंच के कलाकारों को सलाह देते हुए चारण ने कहा कि अभिनय करने वाले कलाकारों का चाहिए कि उन्हें अधिक से अधिक पुस्तकों को पढ़ना चाहिए। इससे उन्हें ना केवल स्वयं को समझने में मदद मिलेगी, बल्कि दूसरों के दृष्टिकोण, मानसिकता और भावनाओं को भी समझने में सहायक होगा।