- अजय शर्मा -
निवाई पशु चिकित्सालय के प्रभारी मेरे मित्र डॉक्टर मुकेश जाटव को सलाम। ये सलाम इसलिए कि जयपुर में दुर्घटना में घायल पत्नी को छोड़ वे इन दिनों लॉकडाउन में भाग भागकर अपनी टीम के साथ बेजुबान पशुओ की जान बचा रहे हैं। चूंकि इन दिनों मेरा उनसे संपर्क भी अधिक रहा तो उनकी ये मेहनत नजर आई। डॉक्टर मुकेश जाटव से मेरा परिचय वैसे तो वर्ष 2006 से है। पीपलू में कोई बड़ा घटनाक्रम हुआ था। टोंक से कनेक्टिविटी रात को न के बराबर थी। हम सोच रहे थे कि संवाददाता रामबाबूजी शायद ही फ़ोटो/खबर ला पाए। देर रात को रामबाबूजी इन्ही डॉक्टर साहब के साथ बाइक पर खबर/फ़ोटो लेकर आये। बाद में इनके सभी पत्रकारों से मित्रवत संबंधों का भी पता लगा। जयपुर तबादले के बाद काफी अर्से तक हमारी मुलाकात भी नहीं हुई। मंत्रीजी ओर डायरेक्टर साब के यहां एकाध बार टकरा गए। अभी अपने वाइट कबूतरों को लेकर एक बार फिर डॉक्टर मुकेश जाटव से बातचीत हुई। पता लगा कि सड़क हादसे के बाद भाभीजी एक तरह से बेड पर ही है। ऑपरेशन भी हुआ पर पैर की तकलीफ बढ़ती ही गई है। वहां से रोज फ़ोन पर चिंताजनक रिपोर्ट ही मिल रही थी। मैंने मंत्रीजी और डायरेक्टर साब से बात कर छुट्टी दिलवाने की भी बोला, पर भाई मैदान छोड़ने को तैयार नहीं है। जयपुरिया हॉस्पिटल में रेडियोलॉजी डिपार्टमेंट के हेड डॉक्टर जीवराज सिंह मेरे अच्छे मित्र हैं। भाभीजी को उनके नंबर दिए ताकि तकलीफ ज्यादा होने पर वहां से मदद मिल सके। अभी एक दिन गलती से सुबह 6 बजे फ़ोन कर लिया। उम्मीद थी कि बिस्तरों में होंगे। एक घंटी पर ही फ़ोन उठाकर डॉक्टर मुकेश ने चौंका दिया। पता लगा कि किसी गरीब काश्तकार की गाय मरणासन्न हालात में लाई गई थी, उसी के ऑपरेशन में जुटे थे। दिन में फ़ोन किया तो भी साथी शिव के साथ जानवर बचाते पाए गए। फिर किसी की भैंस के उपचार में देर तक जुटे नजर आए।
रात को बैठे-बैठे सोच रहा था कि डॉक्टर मुकेश जाटव की जगह मै होता तो शायद कैसे भी छुट्टी हथियाकर घर पहुंच जाता। इसी विचार ने प्रेरित किया कि उनके बारे में लिखने की हिम्मत की जाए। डॉक्टर मुकेश जाटव ही नहीं कई और अधिकारी/कर्मचारी भी ऐसे होंगे जिनकी तकलीफ सामने नहीं आई पर फ़िर भी वे दीवार बनकर आप-हम और कोरोना के बीच अडिग खड़े है। हमें बचाने को। नमन।